30-03-85  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

तीन-तीन बातों का पाठ

बापदादा के विदाई के दिन अनमोल महावाक्य

आज बापदादा अपने सदा के साथी बच्चों से मिलने आये हैं। बच्चे ही बाप के सदा साथी हैं, सहयोगी हैं, क्योंकि अति स्नेही हैं। जहाँ स्नेह होता है उसके ही सदा सहयोगी साथी बनते हैं। तो स्नेही बच्चे होने कारण बाप बच्चों के बिना कोई कार्य कर नहीं सकते। और बच्चे बाप के सिवाए कोई कार्य कर नहीं सकते। इसलिए स्थापना के आदि से बाप ने ब्रह्मा के साथ ब्राह्मण बच्चे रचे। अकेला ब्रह्मा नहीं। ब्रह्मा के साथ ब्राह्मण बच्चे भी पैदा हुए। क्यों? बच्चे सहयोगी साथी क्यों हैं। इसलिए जब बाप की जयन्ती मनाते हो तो साथ में क्या कहते हो? शिव जयन्ती सो ब्रह्मा की जयन्ती, ब्राह्मणों की जयन्ती। तो साथ-साथ बापदादा और बच्चे सभी की आदि रचना हुई और आदि से ही बाप के सहयोगी साथी बने। तो बाप अपने सहयोगी साथियों से मिल रहे हैं। साथी अर्थात् हर कदम में, हर संकल्प में, बोल में साथ निभाने वाले। फॉलो करना अर्थात् साथ निभाना। ऐसे हर कदम में साथ निभाने वाले अर्थात् फॉलो फादर करने वाले सच्चे साथी हैं। अविनाशी साथी हैं। जो सच्चे साथी हैं उन्हों का हर एक कदम स्वत: ही बाप समान चलता रहता है। यहाँ वहाँ हो नहीं सकता। सच्चे साथी को मेहनत नहीं करनी पड़ती। यह कदम ऐसे उठाऊँ वा वैसे उठाऊँ। स्वत: ही बाप के कदम ऊपर कदम रखने के सिवाए जरा भी यहाँ वहाँ हो नहीं सकता। ऐसे सच्चे साथी बच्चों के मन में, बुद्धि में, दिल में क्या समाया हुआ है? ‘मैं बाप का, बाप मेरा’। बुद्धि में है जो बाप का बेहद के खजानों का वर्सा है वह मेरा। दिल में दिलाराम और दिलाराम की याद। और कुछ हो नहीं सकता तो जब बाप ही याद रूप में समाया हुआ है तो जैसी स्मृति वैसी स्थिति और वैसे ही कर्म स्वत: ही होते हैं। जैसे भक्ति मार्ग में भी भक्त निश्चय दिखाने के लिए यही कहते हैं कि देखो हमारे दिल में कौन है! आप कहते नहीं हो लेकिन स्वत: ही आपके दिल से दिलाराम ही सभी को अनुभव होता अर्थात् दिखाई देता है। तो सच्चे साथी हर कदम में बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान हैं।

आज बापदादा बच्चों को बधाई देने आये हैं। सभी सहयोगी साथी बच्चे अपने-अपने उमंग-उत्साह से याद में, सेवा में आगे बढ़ते जा रहे हैं। हरेक के मन में एक ही दृढ़ संकल्प है कि विजय का झण्डा लहराना ही है। सारे विश्व में एक रूहनी बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहरने वाला ही है। जिस ऊँचे झण्डे के नीचे सारे विश्व की आत्मायें यह गीत गायेंगी कि एक बाप आ गया। जैसे अभी आप लोग झण्डा लहराते हो तो सभी झण्डे के नीचे गीत गाते हो और फिर क्या होता है! झण्डा लहराने से सभी के ऊपर फूलों की वर्षा होती है। ऐसे सभी की दिल से यह गीत स्वत: ही निकलेगा। सर्व का एक बाप। गति सद्गति दाता एक बाप। ऐसे गीत गाते ही अविनाशी सुख शान्ति का वर्सा, पुष्पों की वर्षा समान अनुभव करेंगे। बाप कहा और वर्से का अनुभव किया। तो सबके मन में यह एक ही उमंग-उत्साह है। इसलिए बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह पर बच्चों को बधाई देते हैं। विदाई तो नहीं देंगे ना। बधाई। संगमयुग का हर समय बधाई का समय है। तो मन की लगन पर, सेवा की लगन पर बापदादा सभी बच्चों को बधाई दे रहे हैं। सेवा में सदा आगे बढ़ने का सभी का उमंग है। ऐसा कोई नहीं होगा जिसको सेवा में आगे बढ़ने का उमंग न हो। अगर उमंग नहीं होता तो यहाँ कैसे आते! यह भी उमंग की निशानी है ना! उमंग-उत्साह है और सदा रहेगा। साथसाथ उमंग-उत्साह से आगे बढ़ते हुए सेवा में सदा निर्विघ्न हैं? उमंग-उत्साह तो बहुत अच्छा है, लेकिन निर्विघ्न सेवा और विघ्न पार करते-करते सेवा करना, इसमें अन्तर है। निर्विघ्न अर्थात् न किसी के लिए विघ्न रूप बनते और न किसी विघ्न स्वरूप से घबराते। यह विशेषता उमंग-उत्साह के साथ-साथ अनुभव करते हो? या विघ्न आते हैं? एक विघ्न पाठ पढ़ाने आते दूसरा विघ्न हिलाने आते हैं। अगर पाठ पढ़ाके पक्के हो गये तो वह विघ्न लगन में परिवर्तन हो जाते। अगर विघ्न में घबरा जाते हैं तो रजिस्टर में दाग पड़ जाता है। फर्क हुआ ना।!

ब्राह्मण बनना माना माया को चैलेन्ज करना है कि विघ्न भले आओ। हम विजयी हैं। तुम कुछ कर नहीं सकते। पहले माया के फ्रेंडस थे। अब चैलेन्ज करते हो तो मायाजीत बनेंगे। चैलेन्ज करते हो ना? नहीं तो विजयी किस पर बनते हो? अपने ऊपर? विजयी रत्न बनते हो तो विजय माया पर ही प्राप्त करते हो ना! विजय माला में पिराये जाते हैं, पूजे जाते हो। तो मायाजीत बनना अर्थात् विजयी बनना है। ब्राह्मण बनना अर्थात् माया को चैलेन्ज करना। चैलेन्ज करने वाले खेल करते हैं। आया और गया। दूर से ही जान लेते हैं, दूर से ही भगा देते हैं। टाइम वेस्ट नहीं करते हैं। सेवा में तो सभी बहुत अच्छे हो। सेवा के साथसाथ निर्विघ्न सेवा का रिकार्ड हो। जैसे पवित्रता का आदि से रिकार्ड रखते हो ना। ऐसा कौन है जो संकल्प में भी आदि से अब तक अपवित्र नहीं बने हैं! तो यह विशेषता देखते हो ना। सिर्फ इस एक पवित्रता की बात से पास विद ऑनर तो नहीं होंगे। लेकिन सेवा में, स्व स्थिति में, सम्पर्क, सम्बन्ध में, याद में, सभी में जो आदि से अब तक अचल हैं, हलचल में नहीं आये हैं, विघ्नों के वशीभूत नहीं हुए हैं। सुनाया ना कि न विघ्नों के वश होना है, न स्वयं किसके आगे विघ्न रूप बनना है। इसकी भी मार्क्स जमा होती हैं। एक प्युरिटी दूसरा अव्यभिचारी याद। याद के बीच में जरा भी कोई विघ्न न हो। इसी रीति से सेवा में सदा निर्विघ्न हो और गुणों में सदा सन्तुष्ट हो और सन्तुष्ट करने वाले हो। सन्तुष्टता का गुण सभी गुणों की धारणा का दर्पण है। तो गुणों में सन्तुष्टता का स्व प्रति और दूसरों से सर्टिफिकेट लेना होता। यह है पास विद ऑनर की निशानी। अष्ट रत्नों की निशानी। सब में नम्बर लेने वाले हो ना कि बस एक में ही ठीक हैं। सेवा में अच्छा हूँ। बधाई तो बापदादा दे ही रहे हैं। अष्ट बनना है, इष्ट बनना है। अष्ट बनेंगे तो इष्ट भी इतना ही महान बनेंगे। उसके लिए तीन बातें सारा वर्ष याद रखना और चेक करना। और यह तीनों ही बातें अगर जरा भी संकल्प मात्र में रही हुई हों तो विदाई दे देना। आज बधाई का दिन है ना। जब छुट्टी देते हो तो विदाई में क्या करते हो? (मिश्री, बादामी, इलायची देते हैं) उसमें तीन चीज़ें होती हैं। तो बापदादा को भी तीन चीज़ें देंगे ना। विदाई नहीं बधाई है तब तो मुख मीठा कराते हो। तो जैसे यहाँ तीन चीज़ें किसलिए देते हो? फिर जल्दी आने की याद रहेगी। बापदादा भी आज तीन बातें बता रहे हैं। जो सेवा में कभी-कभी विघ्न रूप भी बन जाती हैं। तो तीन बातों के ऊपर विशेष फिर से बापदादा अटेन्शन दिला रहे हैं। जिस अटेन्शन से स्वत: ही पास विद ऑनर बन ही जायेंगे।

एक बात - किसी भी प्रकार का हद का लगाव न हो। बाप का लगाव और चीज़ है लेकिन हद का लगाव न हो।

दूसरा - किसी भी प्रकार का स्वयं का स्वयं से वा किसी दूसरे से तनाव अर्थात् खींचातान नहीं हो। लगाव नहीं हो, माया से युद्ध के बजाए आपस में खींचातान न हो।

तीसरा - किसी भी प्रकार का कमज़ोर स्वभाव न हो। लगाव, तनाव और कमज़ोर स्वभाव। वास्तव में स्वभाव शब्द बहुत अच्छा है। स्वभाव अर्थात् स्व का भाव। स्व श्रेष्ठ को कहा जाता है। श्रेष्ठ भाव है, स्व का भाव है, आत्म-अभिमान है। लेकिन भाव-स्वभाव, भाव-स्वभाव बहुत शब्द बोलते हो ना। तो यह कमज़ोर स्वभाव है। जो समय प्रति समय उड़ती कला में विघ्न रूप बन जाता है। जिसको आप लोग रॉयल रूप में कहते हो मेरी नेचर ऐसी है। नेचर श्रेष्ठ है तो बाप समान हैं। विघ्न रूप बनती है तो कमज़ोर स्वभाव है। तो तीनों शब्दों का अर्थ जानते हो ना। कई प्रकार के तनाव हैं, तनाव का आधार है - ‘मैं-पन’। मैंने यह किया। मैं यह कर सकती हूँ! मैं ही करूँगा! यह जो मैं-पन है यह तनाव पैदा करता है। ‘‘मैं’’ यह देह अभिमान का है। एक है - मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ। एक है मैं फलानी हूँ, मैं समझदार हूँ, मैं योगी हूँ, मैं ज्ञानी हूँ। मैं सेवा में नम्बर आगे हूँ। यह मैं-पन तनाव पैदा करता है। इसी कारण सेवा में कहाँ-कहाँ जो तीव्रगति होनी चाहिए वह तीव्र के बजाए धीमी गति हो जाती है। चलते रहते हैं लेकिन स्पीड नहीं हो सकती। स्पीड तीव्र करने का आधार है - दूसरे को आगे बढ़ता हुआ देख सदा दूसरे को बढ़ाना ही अपना बढ़ना है। समझते हो ना सेवा में क्या मैं-पन आता है। यह मैं-पन ही तीव्रगति को समाप्त कर देता है। समझा!

यह तीन बातें तो देंगे ना कि फिर साथ में ले जायेंगे। इसको कहा जाता है - ‘त्याग से मिला हुआ भाग्य’। सदा बांटके खाओ और बढ़ाओ। यह त्याग का भाग्य मिला है। सेवा का साधन यह त्याग का भाग्य है। लेकिन इस भाग्य को मैंपन में सीमित रखेंगे तो बढ़ेगा नहीं। सदा त्याग के भाग्य के फल को औरों को भी सहयोगी बनाए बांटके आगे बढ़ो। सिर्फ मैं, मैं नहीं करो, आप भी खाओ। बांटकर एक दो में हाथ मिलाते हुए आगे बढ़ो। अभी सेवा के बीच में यह वायब्रेशन दिखाई देते हैं। तो इसमें फराखदिल हो जाओ। इसको कहते हैं - जो ओटे सो अर्जुन। एक दो को नहीं देखो। यह भी तो ऐसे करते हैं ना! यह तो होता ही है, लेकिन मैं विशेषता दिखाने के लिए निमित्त बन जाऊँ। ब्रह्मा बाप की विशेषता क्या रही! सदा बच्चों को आगे रखा। मेरे से बच्चे होशियार हैं। बच्चे करेंगे! इतने तक त्याग के भाग्य का त्याग किया। अगर कोई प्यार के कारण, प्राप्ति के कारण ब्रह्मा की महिमा करते थे तो उसको भी बाप की याद दिलाते थे। ब्रह्मा से वर्सा नहीं मिलेगा। ब्रह्मा का फोटो नहीं रखना है। ब्रह्मा को सब कुछ नहीं समझना। तो इसको कहा है - त्याग के भाग्य का भी त्याग कर सेवा में लग जाना। इसमें डबल महादानी हो जाते। दूसरा आफर करे, स्वयं अपनी तरफ न खींचे। अगर स्वयं अपनी महिमा करते, अपनी तरफ खींचते हैं तो उसको क्या शब्द कहते हैं! मुरलियों में सुना है ना। ऐसा नहीं बनना। कोई भी बात को स्वयं अपनी तरफ खींचने की खींचातान कभी नहीं करो। सहज मिले वह श्रेष्ठ भाग्य है। खींच के लेने वाला इसको श्रेष्ठ भाग्य नहीं कहेंगे। उसमें सिद्धि नहीं होती। मेहनत ज्यादा सफलता कम। क्योंकि सभी की आशीर्वाद नहीं मिलती है। जो सहज मिलता है उसमें सभी की आशीर्वाद भरी हुई है। समझा –

तनाव क्या है! लगाव को तो उस दिन स्पष्ट किया था। कोई भी कमज़ोर स्वभाव न हो। ऐसे भी नहीं समझो मैं तो इस देश का रहने वाला हूँ। इसलिए मेरा स्वभाव, मेरा चलना मेरा रहना ऐसा है, नहीं। देश के कारण, धर्म के कारण, संग के कारण ऐसा मेरा स्वभाव है। यह नहीं। आप कौन से देश वाले हो! यह तो सेवा के लिए निमित्त स्थान मिले हैं। न कोई विदेशी है, न यह नशा हो कि मैं भारतवासी हूँ। सभी एक बाप के हैं। भारतवासी भी ब्राह्मण आत्मायें हैं। विदेश में रहने वाले भी ब्राह्मण आत्मायें हैं। अन्तर नहीं है। ऐसे नहीं भारतवासी ऐसे हैं। विदेशी ऐसे हैं। यह शब्द भी कभी नहीं बोलो। सब ब्राह्मण आत्मायें हैं। यह तो सेवा के लिए स्थान है। सुनाया था ना कि आप विदेश में क्यों पहुँचे हो? वहाँ क्यों जन्म लिया? भारत में क्यों नहीं लिया? वहाँ गये हो सेवा स्थान खोलने के लिए। नहीं तो भारतवासियों को वीसा का कितना प्रॉबलम है। आप सब तो सहज रहे पड़े हो। कितने देशों में सेवा हो रही है! तो सेवा के लिए विदेश में गये हो। बाकी हो सभी ब्राह्मण आत्मायें। इसलिए कोई भी किसी आधार में स्वभाव नहीं बनाना। जो बाप का स्वभाव वह बच्चों का स्वभाव। बाप का स्वभाव क्या है? सदा हर आत्मा के प्रति कल्याण वा रहम की भावना का स्वभाव। हर एक को ऊँचा उठाने का स्वभाव, मधुरता का स्वभाव। निर्मानता का स्वभाव। मेरा स्वभाव ऐसा है यह कभी नहीं बोलना। मेरा कहाँ से आया। मेरा तेज बोलने का स्वभाव है, मेरा आवेश में आने का स्वभाव है। स्वभाव के कारण हो जाता है। यह माया है। कईयों का अभिमान का स्वभाव, ईर्ष्या का, आवेश में आने का स्वभाव होता है, दिलशिकस्त होने का स्वभाव होता है। अच्छा होते भी अपने को अच्छा नहीं समझते। सदैव अपने को कमज़ोर ही समझेंगे। मैं आगे जा नहीं सकती। कर नहीं सकती। यह दिलशिकस्त स्वभाव यह भी रांग है। अभिमान में नहीं आओ। लेकिन स्वमान में रहो तो इसी प्रकार के स्वभाव को कहा जाता है कमज़ोर स्वभाव। तो तीनों बातों का अटेन्शन सारा वर्ष रखना। इन तीनों बातों से सेफ रहना है। मुश्किल तो नहीं है ना। साथी आदि से अन्त तक सहयोगी साथी है। साथी तो समान चाहिए ना। अगर साथियों में समानता नहीं होगी तो साथी प्रीत की रीति निभा नहीं सकते। अच्छा यह तो 3 बातें अटेन्शन में रखेंगे। लेकिन इन तीन बातों से सदा किनारा करने के लिए और 3 बातें याद रखनी हैं। आज तीन का पाठ पढ़ा रहे हैं। सदा अपने जीवन में - एक बैलेन्स रखना है। सब बात में बैलेन्स हो। याद में, सेवा में बैलेन्स। स्वमान, अभिमान को समाप्त करता। स्वमान में स्थित रहना। यह सब बातें स्मृति में रहे। ज्यादा रमणीक भी नहीं, ज्यादा गम्भीर भी नहीं। बैलेन्स हो। समय पर रमणीक, समय पर गम्भीर। तो एक है ‘बैलेन्स’। दूसरा सदा अमृतवेले बाप से विशेष ब्लैसिंग लेनी है! रोज अमृतवेले बापदादा बच्चों प्रति ब्लैसिंग की झोली खोलते हैं। उससे जितना लेने चाहो उतना ले सकते हो। ‘तो बैलेन्स, ब्लैसिंग तीसरा ब्लिसफुल लाइफ’। तीनों बातें स्मृति में रहने से वह तीनों बातें जो अटेन्शन देने की हैं, वह स्वत: ही समाप्त हो जायेंगी। समझा! अच्छा और तीन बातें सुनो –

लक्ष्य रूप में वा धारण के रूप में विशेष तीन बातें ध्यान में रखनी हैं। वह छोड़नी हैं और वह धारण करनी है। छोड़ने वाली तो छोड़ दी ना सदा के लिए। उसको याद करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन यह तीन बातें जो सुनाई यह स्मृति में रखना और धारणा स्वरूप में विशेष याद रखना। एक - सब बातों में रीयल्टी हो। मिक्स नहीं। इसको कहते हैं - रीयल्टी। संकल्प में, बोल में, सब बात में रीयल। ‘सच्ची दिल पर साहेब राजी’। सच की निशानी क्या होगी? सच तो बिठो नच। जो सच्चा होगा वह सदा खुशी में नाचता रहेगा। तो एक रीयल्टी दूसरा रॉयल्टी। छोटी-छोटी बात में कभी भी बुद्धि झुकाव में न आवे। जैसे रॉयल बच्चे होते हैं तो उन्हों की कब छोटी-सी चीज़ पर नजर नहीं जायेगी। अगर नजर गई तो उसको रॉयल नहीं कहा जाता। किसी भी छोटी-छोटी बातों में बुद्धि का झुकाव हो जाए तो उसको रॉयल्टी नहीं कहा जाता। जो रॉयल होता है वह सदा प्राप्ति स्वरूप होता है। कहाँ अरँख वा बुद्धि नहीं जाती। तो यह है रूहानी रॉयल्टी, कपड़ों की रॉयल्टी नहीं। ‘तो रीयल्टी, रॉयल्टी और तीसरा युनिटी’। हर बात में, संकल्प में, बोल में, कर्म में भी सदा एक दो में युनिटी दिखाई दे। ब्राह्मण माना ही एक। लाख नहीं, एक। इसको कहा जाता है युनिटी। वहाँ अनेक स्थिति के कारण एक भी अनेक हो जाते। और यहाँ अनेक होते भी एक हैं। इसको कहा जाता है - ‘युनिटी’। दूसरे को नहीं देखना है। हम चाहते हैं युनिटी करें लेकिन यह नहीं करते हैं। अगर आप करते रहेंगे तो उसको डिसयुनिटी का चांस ही नहीं मिलेगा। कोई हाथ ऐसे करता, दूसरा न करे तो आवाज़ नहीं होगा। अगर कोई डिसयुनिटी का कोई भी कार्य करता है, आप युनिटी में रहो तो डिसयुनिटी वाले कब डिसयुनिटी का काम कर नहीं सकेंगे। युनिटी में आना ही पड़ेगा। इसलिए तीन बातें - रीयल्टी, रॉयल्टी और युनिटी। यह तीनों ही बातें सदा बाप समान बनने में सहयोगी बनेंगी। समझा! आज तीन का पाठ पढ़ लिया ना। बाप को तो बच्चों पर नाज़ है। इतने योग्य बच्चे और योगी बच्चे किसी बाप के हो ही नहीं सकते। योग्य भी हो, योगी भी हो और एक-एक पदमापदम भाग्यवान हो। सारे कल्प में इतने और ऐसे बच्चे हो ही नहीं सकते। इसलिए विशेष अमृतवेले का टाइम बापदादा ने क्यों रखा है - ब्राह्मण बच्चों के लिए। क्योंकि विशेष बापदादा हर बच्चे की विशेषता को, सेवा को, गुण को सदा सामने लाते हैं। और क्या करते हैं? जो हर बच्चे की विशेषता है, गुण है, सेवा है, उसको विशेष वरदान से अविनाशी बनाते हैं। इसलिए खास यह समय बच्चों का रखा है। अमृतवेले की विशेष पालना है। हर एक को बापदादा स्नेह के सहयोग की, वरदान की पालना देते हैं। समझा बाप क्या करते हैं और आप लोग क्या करते हो। शिवबाबा सुखदाता है, शान्ति दाता है...ऐसे कहते हो ना। और बाप पालना देते हैं। जैसे माँ बाप बच्चों को सवेरे तैयार करते साफ सुथरा करके फिर कहते अब सारा दिन खाओ पियो पढ़ो। बापदादा भी अमृतवेले यह पालना देते अर्थात् सारे दिन के लिए शक्ति भर देते हैं। विशेष पालना का यह समय है। यह एक्स्ट्रा वरदान की पालना का समय है। अमृतवेले वरदानों की झोली खुलती है। जितना जो वरदान लेने चाहे सच्ची दिल से, मतलब से नहीं। जब मतलब होगा तब कहेंगे हमको यह दो, जो मतलब से मांगता है तो बापदादा क्या करते हैं! उनका मतलब सिद्ध करने के लिए उतनी शक्ति देता है, मतलब पूरा हुआ और खत्म। फिर भी बच्चे हैं, ना तो नहीं करेंगे। लेकिन सदा ही वरदानों से पलते रहो, चलते रहो, उड़ते रहो उसके लिए जितना अमृतवेला शक्तिशाली बनायेंगे उतना सारा दिन सहज होगा। समझा।

अभी इस वर्ष गोल्डन जुबली की तैयारी तो कर रहे हो- लेकिन इस वर्ष में हर एक सेवाकेन्द्र पर और क्या विशेषता करो वह बता रहे हैं। गोल्डन जुबली तो करनी है वह नहीं भूल जाना लेकिन साथ-साथ बापदादा सभी स्थानों का चक्र लगाते, क्लासेज देखते हैं। रेग्युलर स्टूडेन्ट देखते हैं, कभी-कभी आने वाले देखते, सम्पर्क वाले देखते। यह सब देखते हुए इस वर्ष यह लक्ष्य रखो कि हर सेन्टर पर, हर प्रकार की वैराइटी होनी चाहिए। वकील भी हो, जज भी हो, डाक्टर भी हो, साइन्स वाला आदि...सब होने चाहिए। सभी धर्म वाले भी होने चाहिए। सब प्रकार की वैराइटी ज्यादा में ज्यादा जितनी भी हो लेकिन कम से कम एक भी आक्यूपेशन वाले सब वैराइटी हर स्थान पर होनी चाहिए। स्टूडेन्ट भी हो तो बूढ़ा भी हो, युवा भी हो, बच्चा भी हो। सब प्रकार की वैराइटी होनी चाहिए। प्रवृत्ति वाले युगल भी होने चाहिए। जैसे आप लोग रिजल्ट निकालते हो - एक तो आयु के हिसाब से वैराइटी निकालते हो। दूसरा सेवा के हिसाब से वर्ग निकालते हो। एक भी आक्यूपेशन वाला कम न हो। इसको कहा जाता है - वैराइटी प्रकार का गुलदस्ता। एक भी रंग रूप का पुष्प कम न हो। हर एक सेवाकेन्द्र - ऐसी संख्या सब प्रकार की बढ़ाओ। जितना बढ़ाओ उतना नम्बर आगे हो। इस वर्ष में ऐसे वैराइटी प्रकार के स्टूडैण्ट तैयार करो। कोई जिस भी क्लास में जावे तो उनको सब प्रकार के आक्यूपेशन वाले दिखाई दें। और वह एक फिर अपने हमजिन्स की सेवा जरूर करे तो संख्या भी बढ़ जायेगी और वैराइटी भी होगी। बाकी वी.आई.पी. की सर्विस तो करते ही हो। उसमें भी एडीशन। बापदादा ने सुनाया था - सिर्फ सुनने लिए नहीं आवें लेकिन लेने लिए आवें। बन करके जावें। सिर्फ सुना बहुत अच्छा लगा। नहीं। कुछ लेके जा रहा हूँ। बनकर के जा रहा हूँ। वी.आई.पी. की सेवा तो जितना बढ़ाते रहेंगे उतना आवाज़ बुलन्द होता जायेगा। धीरे-धीरे आवाज़ बुलन्द हो रहा है लेकिन एक तरफ का एक आवाज़ बड़ा आता है। सब तरफ नहीं होता है। तो एक तरफ का आवाज़ छिप जाता है। चारों तरफ से बुलन्द आवाज़ होगा तो विजय का नगाड़ा। बज जायेगा। जब विजय का नगाड़ा बजाते हैं तो चारों तरफ चक्कर लगाते हैं। चारों तरफ आवाज़ फैलता है। तो समझा सेवा में क्या करना है! स्वस्थिति और सेवा के उन्नति। स्व स्थिति ही सेवा की उन्नति के लिए सहज सिद्धि वा सहज साधन है। स्व की उन्नति के बिना सेवा की उन्नति अविनाशी, निर्विघ्न नहीं बनेगी। इसलिए दोनों का बैलेन्स हो। स्व उन्नति को छोड़ सिर्फ सेवा की उन्नति नहीं करो। साथ-साथ करो। नहीं तो जिनके निमित्त बनते हैं वह भी कमज़ोर होते। उन्हों को भी बहुत मेहनत करनी पड़ती। इसलिए स्व उन्नति, सेवा की उन्नति सदा ही साथ रखते हुए उड़ते चलो। अच्छा –

सदा स्वयं को पास विद ऑनर बनने के लक्ष्य और लक्षण में चलाने वाले, सदा स्वयं को ब्रह्मा बाप समान त्याग का भाग्य बांटने वाले, नम्बरवन त्यागी, श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले, सदा सहज प्राप्ति के अधिकारी बन स्व उन्नति और सेवा की उन्नति करने वाले, सदा हर कदम में सहयोगी, साथी बन आगे बढ़ने वाले, स्मृति, स्थिति शक्तिशाली बनाने से सदा बाप को फॉलो करने वाले, ऐसे सदा सहयोगी-साथी, फरमानवरदार, आज्ञाकारी, सन्तुष्ट रहने वाले, सर्व को राजी करने के राज़ को जानने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को, महान पुण्य आत्माओं को, डबल महादानी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

बड़ी दादियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - आदि से अब तक जो हर कार्य में साथ चलते आ रहे हैं, उन्हों की यह विशेषता है - जैसे ब्रह्मा बाप हर कदम में अनुभवी बन अनुभव की अथॉरिटी से विश्व के राज्य की अथॉरिटी लेते हैं ऐसे ही आप सभी भी बहुतकाल के हर प्रकार के अनुभव की अथॉरिटी के कारण बहुतकाल के राज्य की अथॉरिटी में भी साथी बनने वाले हो। जिन्होंने आदि से संकल्प किया - जहाँ बिठायेंगे, जैसे चलायेंगे वैसे चलते हुए साथ चलेंगे। तो साथ चलने का पहला वायदा बापदादा को निभाना ही पड़ेगा। ब्रह्मा बाप के भी साथ रहने वाले हो। राज्य में भी साथ रहेंगे, भक्ति में भी साथ रहेंगे। जितना अभी बुद्धि से सदा का साथ रहता है उसी हिसाब से राज्य में भी सदा साथ हैं। अगर अभी थोड़ा-सा दूर तो कोई जन्म में दूर के हो जायेंगे। कोई जन्म में नजदीक के। लेकिन जो सदा ही बुद्धि से साथ में रहते हैं, वह वहाँ भी साथ-साथ रहेंगे। साकार में तो आप सब 14 वर्ष साथ रहे, संगमयुग के 14 वर्ष कितने वर्षों के समान हो गये। संगमयुग का इतना समय साकार रूप में साथ रहे हो, यह भी बहुत बड़ा भाग्य है। फिर बुद्धि से भी साथ हो, घर में भी साथ होंगे, राज्य में भी साथ होंगे। भले तख्त पर थोड़े बैठते हैं लेकिन रॉयल फैमली के नजदीक सम्बन्ध में, सारे दिन की दिनचर्या में साथ रहने में पार्ट जरूर बजाते हैं। तो यह आदि से साथ रहने का वायदा सारा कल्प ही चलता रहेगा। भक्ति में भी काफी समय साथ रहेंगे। यह पीछे के जन्म में थोड़ा-सा कोई दूर, कोई नजदीक लेकिन फिर भी साथ सारा कल्प किसी न किसी रूप से रहते हैं। ऐसा वायदा है ना! इसलिए आप लोगों को सभी किस नजर से देखते हैं! बाप के रूप हो। इसी को ही भक्ति में उन्होंने कहा है - यह सब भगवान के रूप हैं! क्योंकि बाप समान बनते हो ना! आपके रूप से बाप दिखाई देता है इसलिए बाप के रूप कह देते हैं। जो बाप के सदा साथ रहने वाले हैं उनकी यही विशेषता होगी, उनको देखकर बाप याद आयेगा, उनको नहीं याद करेंगे लेकिन बाप को याद करेंगे। उन्हों से बाप के चरित्र, बाप की दृष्टि, बाप के कर्म, सब अनुभव होंगे। वह स्वयं नहीं दिखाई देंगे लेकिन उन द्वारा बाप के कर्म वा दृष्टि अनुभव होगी। यही विशेषता है अनन्य, समान बच्चे की। सभी ऐसे हो ना! आप में तो नहीं फँसते हैं ना! यह तो नहीं कहते फलानी बहुत अच्छी है, नहीं। बाप ने इन्हें अच्छा बनाया है। बाप की दृष्टि, बाप की पालना इन्हों से मिलती है। बाप के महावाक्य इन्हों से सुनते हैं। यह विशेषता है। इसको कहा जाता है - प्यारा भी लेकिन न्यारा भी। प्यारा भले सबका हो लेकिन फँसानेवाला नहीं हो। बाप के बदले आपको याद न करें। बाप की शक्ति लेने के लिए बाप के महावाक्य सुनने के लिए आपको याद करें। इसको कहते हैं - ‘प्यारा भी और न्यारा भी’। ऐसा ग्रुप है ना! कोई तो विशेषता होगी ना जो साकार की पालना ली है - विशेषता तो होगी ना। आप लोगों के पास आयेंगे तो क्या पूछेंगे - बाप क्या करता था, कैसे चलता था...यही याद आयेगा ना! ऐसी विशेष आत्मायें हो। इसको कहते हैं - डिवाइन युनिटी। डिवाइन की स्मृति दिलाए डिवाइन बनाते, इसलिए डिवाइन युनिटी। 50 वर्ष अविनाशी रहे हो तो अविनाशी भव की मुबारक हो। कई आये कई चक्र लगाने गये। आप लोग तो अनादि अविनाशी हो गये। अनादि में भी साथ, आदि में भी साथ। वतन में साथ रहेंगे तो सेवा कैसे करेंगे! आप तो थोड़ा-सा आराम भी करते हो, बाप को आराम की भी आवश्यकता नहीं। बापदादा इससे भी छूट गये। अव्यक्त को आराम की आवश्यकता नहीं। व्यक्त को आवश्यकता है। इसमें आपसमान बनायें तो काम खत्म हो जाए। फिर भी देखो जब कोई सेवा का चांस बनता है तो बाप समान अथक बन जाते हो। फिर थकते नहीं हो। अच्छा –

दादीजी से - बचपन से बाप ने ताजधारी बनाया है। आते ही सेवा की जिम्मेवारी का ताज पहनाया और समय प्रति समय जो भी पार्ट चला - चाहे बेगरी पार्ट चला, चाहे मौजों का पार्ट चला, सभी पार्ट में जिम्मेवारी का ताज ड्रामा अनुसार धारण करती आई हो। इसलिए अव्यक्त पार्ट में भी ताजधारी निमित्त बन गई। तो यह विशेष आदि से पार्ट है। सदा जिम्मेवारी निभाने वाली। जैसे बाप जिम्मेवार है तो जिम्मेवारी के ताजधारी बनने का विशेष पार्ट है। इसलिए अन्त में भी दृष्टि द्वारा ताज, तिलक सब देकर गये। इसलिए आपका जो यादगार है ना उसमें ताज जरूर होगा। जैसे कृष्ण को बचपन से ताज दिखाते हैं तो यादगार में भी बचपन से ताजधारी रूप से पूजते हैं। और सब साथी हैं लेकिन आप ताजधारी हो। साथ तो सभी निभाते लेकिन समान रूप में साथ निभाना। इसमें अन्तर है।

विदाई के समय सभी बच्चों को यादप्यार - सभी तरफ के स्नेही सहयोगी बच्चों को बापदादा का विशेष स्नेह सम्पन्न यादप्यार स्वीकार हो। आज बापदादा सभी बच्चों को सदा निर्विघ्न बन, विघ्न विनाशक बन विश्व को निर्विघ्न बनाने के कार्य की बधाई दे रहे हैं। हर बच्चा यही श्रेष्ठ संकल्प करता है कि सेवा में सदा आगे बढ़ें, यह श्रेष्ठ संकल्प सेवा में सदा आगे बढ़ा रहा है और बढ़ाता रहेगा। सेवा के साथ-साथ स्व-उन्नति और सेवा की उन्नति का बैलेन्स रख आगे बढ़ते चलो तो बापदादा और सर्व आत्माओं द्वारा जिन्हों के निमित्त बनते हो, उन्हों के दिल की दुआयें प्राप्त होती रहेंगी। तो सदा बैलेन्स द्वारा ब्लैसिंग लेते हुए आगे बढ़ते चलो। स्व-उन्नति और सेवा की उन्नति दोनों साथ-साथ रहने से सदा और सहज सफलता स्वरूप बन जायेंगे। सभी अपने-अपने नाम से विशेष यादप्यार स्वीकार करना। अच्छा – ओम शान्ति।